आकाशात आणि मनात
एकाच वेळी मळभ कसं दाटून येतं?
आकाशालाही कुणाची तरी आठवण छळते वाटतं!
------------------------------------------------
रोज तर तुझ्याशी बोलणं होतं
फक्त अमावस्या सोडून....
वेडा चंद्रच त्या रात्री उगवत नाही!
------------------------------------------------
स्वतःची तारीफ स्वतःच करते आता
पण आरशासमोर यायचं टाळते
मेला आरसा खोटं का बोलत नाही?
------------------------------------------------
जमतील तितके कढ रिचवले
पण एका नाजुक क्षणी बांध फुटलाच!
काठोकाठ भरलेली कळशी नेहमीच थोड्याश्याही धक्क्याने हिंदकळते!
------------------------------------------------
--शुभा मोडक (११-एप्रिल-१२)
No comments:
Post a Comment